लंका….वही सोने की लंका….
कभी रावण की,
कभी श्री राम की लंका….
कभी विभीषण को दी गई
दान की लंका…….
आज अराजकता के दौर में है
भ्रष्टाचार की शिकार है,
पाई-पाई को मोहताज है
कभी राक्षस कुल का
अभिमान थी…सोने की लंका…
आज दुर्दशा ग्रस्त है…और…
अभिशप्त है लंका….
लंका में निकल गया
सब का दिवाला है…यहाँ तक कि
छिन गया सब का निवाला है…
गलत नीतियों का ही बोलबाला है
अपने ही राजनेताओं की…
गलत नीतियों के मकड़जाल का
शिकार हुई है लंका….
यहाँ मंतरी,संतरी औऱ राजा
सब पर भारी उत्पाती प्रजा है…
लगता है संचित पापों की
लंका अब पा रही सजा है…..
माँ जानकी के चरण धाम से
श्री लेकर नाम जो पाया श्रीलंका
गौर से देखो अब….पूर्ण रूप से…
राम भरोसे हो गई है लंका
खून के आंसू रो रही…और….
विश्व को निहार रही है लंका
इधर….विश्व भर में बज रहा है
अयोध्या का डंका…
अयोध्या में अब रोज दिवाली है
हर ओर उमंग और खुशहाली है
अयोध्या…साधु-संतों की नगरी…
जो मंदिरों और घाटों से है पटी
इतिहास के आईने में जो
लगती थी कुछ अटपटी…
अब हर ओर से निखर रही है
संतो में रामलला का उत्साह है,
भक्तों का भी उमड़ रहा रेला है…
मंतरी,संतरी,राजा-प्रजा….
सबसे है अयोध्या का दरबार सजा
उधर लंका जल रही है मित्रों…
इधर राम-जानकी की नगरी,
अयोध्या सज रही है मित्रों….
कलियुग में अब त्रेता युग की
झलक दिख रही है….
इतिहासकारों की….मान्यतायें….
अखण्ड सच हो रही हैं मित्रों…
क्योंकि हर दृष्टिकोण से …..
इतिहास की पुनरावृत्ति हो रही है..
इतिहास की पुनरावृत्ति हो रही है..
रचनाकार,
जितेन्द्र कुमार दुबे
अपर पुलिस अधीक्षक/क्षेत्राधिकारी नगर
जनपद-जौनपुर