अब न कराओ मुझसे मनुहार…
सखि रे….
बीत गया रक्षाबंधन…..
मतलब…बीत गया सावन….
सावन में भी घर नहि आए
मेरे साजन….मेरे प्रियतम…
आग लगी जो सूखे सावन में
अब धू-धू कर बढ़ती जाए…
राख कहीं ना बन जाऊँ
इस भादो में….और….
गगन में धुँधली छाए…
सखि ….तुम ही बताओ….
क्यों नहीं आये साजन…?
भादो की ये काली घटाएं…
मन को बहुत डराएं
ऊपर से ये ननद बावरी,
ताना दे-देकर उलझाए….
नटखट देवर कोहनी देकर,
तन-मन-हिय में आग लगाए
डरा हुआ मन मेरा सोचे….
सौतन भी ऐसा दुख ना पाए
जो सावन में साजन घर ना आए..
सखि रे….सूख रहा है…
कजरौटे का काज़र….
मेहंदी का रंग हुआ है फीका,
हाँड़-मास सब एक हुए हैं
काया कांप रही है
थर -थर-थर-थर…..
फिर भी…साजन प्रियवर…
सूखे नैन राह तके हैं होकर कातर
जन्म-अष्टमी अभी है बाकी……
तुम कान्हा बनकर आ जाओ
बीते सावन के मिलन अधूरे को
भादो में पूरा कर जाओ…..
हरियाली तीज भी है बाकी
तुम आ जाओ अब यार…
हरी चूड़ियाँ पहन सकूँ मैं
डाल सकूँ बालों में गजरा…
लाल सी बिंदी लगा के माथे,
मन भर तुम से लिपट सकूँ मैं
करके नया सिंगार…और…
सजन तुमको भी….
कह न सके कोई,
कि तुम हो बस मतलब के यार..
बिधना….तुमसे भी मैं माँग रही हूँ
फैलाये अपना अचरा…..
कुछ तो ऐसा जतन करो
सावन जैसा रहे न मौसम
जमकर बरसें भादो के बदरा
बिन बुलाये ही आ जाये साजन
जो है मुझको भूला-बिसरा….
इस भादों में जो आये सजना…
बात सुनो मेरी बिधना….
उसे बताओ तुम रस जीवन का
और बताओ जग-व्यवहार….
प्यार-प्रेम ही शाश्वत है इस जग में
जान ले वह इसे अबकी बार…
मुदित-मिलन को समझ ले साजन
फिर-फिर न करावे मुझसे मनुहार
फिर-फिर न करावे मुझसे मनुहार
रचनाकार….
जितेन्द्र कुमार दुबे
अपर पुलिस अधीक्षक/क्षेत्राधिकारी नगर,जौनपुर