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जौनपुर के इस गांव मे ब्रिटिश सरकार ने 15 क्रांतिकारियों को पेड़ पर दी थी फांसी

जौनपुर : हिंदुस्तान को आजाद कराने के लिए क्रांति का बिगुल साल 1857 मे बज चुका था। ब्रिटानिया हुकूमत को सबक सिखाने के लिए क्रांतिकारी मर-मिटने को आमादा हो गए थे। क्रांति के इस आंदोलन में जौनपुर के हौज गांव के पास क्रांतिकारियों के जत्थे ने अंग्रेज सिपाहियों की टुकड़ी पर हमला बोल दिया। हमले में क्रांतिकारियों ने सभी 25 अंग्रेज सिपाहियों को मौत के घाट उतार दिया। इसके बाद 24 शव को कुछ दूर दफना दिया। क्रांतिकारियों ने एक अंग्रेज अफसर का शव जानबूझकर वहीं छोड़ दिया। जिससे ब्रिटिश सरकार तक सूचना पहुंच सके। 25 सिपाहियों की हत्या से अंग्रेजी हुकूमत में हड़कंप मच गया। नतीजा यह हुआ कि 15 क्रांतिकारियों को महुआ के पेड़ पर फांसी दे दिया गया।

जौनपुर जनपद के जफराबाद थाना क्षेत्र के हौज खास गांव मे  में शहीद स्मारक बना हुआ है। इस स्मारक पर 16 क्रांतिकारियों के नाम दर्ज हैं। इन क्रांतिकारियों को 1858 में ब्रिटिश सरकार द्वारा गांव में ही महुए के पेड़ पर फांसी के फंदे से लटका दिया गया था। बताते हैं कि ये सभी जौनपुर के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के हिस्सा थे। इन क्रांतिकारियों ने लगभग 25 अंग्रेज सिपाहियों की हत्या कर दी थी।

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हौज गांव मे बना शहीद स्मारक का प्रवेश द्वार

दरअसल अंग्रेज सिपाहियों की एक टुकड़ी सार्जेंट विगवूड के नेतृत्व में जौनपुर से वाराणसी जा रही थी। 1857 की क्रांति के चलते अंग्रेज सिपाही जौनपुर में अपने आप को असुरक्षित महसूस कर रहे थे। जौनपुर से तकरीबन 60 किलोमीटर दूर बनारस में अंग्रेज सिपाहियों की बड़ी कंपनी तैनात थी। ऐसे में सार्जेंट विगवूड को लगा कि अगर वो बनारस पहुंच जाएंगे तो सुरक्षित रहेंगे। 5 जून 1857 को कच्ची सड़क पकड़ते हुए विगवूड अंग्रेज सिपाहियों की टुकड़ी के साथ बनारस के लिए निकल पड़े। इसकी सूचना हौज गांव के जमींदार बाल दत्त को लग गई। बालदत्त ने अंग्रेज सिपाहियों की टुकड़ी पर हमला करने की योजना तैयार कर ली। कच्ची सड़क के किनारे बड़े-बड़े झुरमुट थे। पास में दो पुलिया भी थी। क्रांतिकारियों का बड़ा जत्था झुरमुट और पुलिया के किनारे छुप गया। इस योजना से बेखबर अंग्रेजी सिपाही सार्जेंट विगवुड के नेतृत्व में चले आ रहे थे। वह जैसे ही इस गांव के समीप पहुंचे वैसे ही क्रांतिकारियों के जत्थे ने उन पर हमला बोल दिया। इस हमले में सार्जेंट समेत सभी 25 अंग्रेजी सिपाहियों की हत्या कर दी गई। बालदत्त ने सार्जेंट विगवूड को उसी के लाइसेंसी असलहे से मौत के घाट उतार दिया था। हत्या करने के बाद गांव से पश्चिम दिशा में टांडिया के भीटे में 24 लाश को दफन कर दिया गया। क्रांतिकारियों ने जानबूझकर सार्जेंट के शव को वहीं छोड़ दिया। सार्जेंट विगवूड और अन्य अंग्रेज सिपाहियों की मौत जंगल में आग की तरह फैल गयी। लेकिन, आंदोलन छिड़ा होने के कारण अंग्रेजी हुकूमत कुछ नहीं कर सकी। लेकिन क्रांतिकारियों से इत्तेफाक में रखने वालों ने घटना में शामिल लोगों की मुखबिरी ब्रिटिश हुकूमत को कर दी।

जब 1857 की क्रांति को काबू में किया गया तो इस मामले की छानबीन शुरू हुई। सार्जेंट विगवूड के हत्यारों की तलाश में ब्रिटिश सिपाहियों ने हौज़ गांव में दबिश दी। सभी क्रांतिकारी इस बात से अंजान थे। अचानक शुरू हुई धरपकड़ से क्रांतिकारी पकड़े गए। क्रांतिकारियों को तीन चरण में फांसी की सजा सुनाई गई। फांसी के दौरान अधिकतर लोगों की उम्र 18- 25 साल के बीच थी। इन लोगों को गांव में ही महुए के पेड़ पर फांसी के फंदे पर लटका दिया।

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